SCI अनुसंधान का इतिहास
प्राचीन मिस्र से वर्तमान तक: SCI अनुसंधान
विज्ञान और चिकित्सा के इतिहास के अधिकांश भाग में, रीढ़ की हड्डी की चोट/क्षति और लकवे को पलटी न जा सकने वाली और असाध्य व्याधियां माना जाता रहा है। प्राचीन मिस्र जितनी पीछे जाएं तो, चिकित्सकों का विश्वास था कि वे रीढ़ की हड्डी से संबंधित क्षति से ग्रस्त व्यक्ति की सहायता के लिए कुछ नहीं कर सकते हैं। समय के साथ तंत्रिका तंत्र और उसके कार्यों की हमारी समझ और गहरी हुई, पर इसके बावजूद यह विश्वास बना रहा कि केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सेंट्रल नर्वस सिस्टम, CNS, यानि मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी) की तंत्रिकाएं चोटिल या क्षतिग्रस्त हो जाने पर दोबारा नहीं उग सकती हैं।
पिछले लगभग 35 वर्षों में ही इस सिद्धांत को तिलांजलि दी गई है। लंबे समय से यह ज्ञात है कि शरीर के अंदर मौजूद क्षतिग्रस्त परिधीय तंत्रिकाएं स्वयं की पुनर्रचना कर सकती हैं और उनकी संपूर्ण कार्यक्षमता बहाल हो सकती है। वैज्ञानिक यह जानना चाहते थे कि परिधीय तंत्रिकाओं के परिवेश में ऐसा क्या विशेष है।
1980 के दशक में चूहों पर किए गए प्रयोगों में पता चला कि केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की कोशिकाएं अपने तंत्रिका तंतुओं, जिन्हें एक्ज़ॉन कहते हैं, को प्रयोगशाला में परिधीय तंत्रिका तंत्र (पेरिफेरल नर्वस सिस्टम, PNS) की स्थितियों की नकल करने वाली स्थितियों में फिर से उगा सकती हैं।
क्यों? आंशिक रूप से इसलिए क्योंकि PNS के परिवेश में कुछ ऐसे पोषकतत्व मिलते हैं जो CNS के एक्ज़ॉन को पसंद आते हैं, और आंशिक रूप से इसलिए भी क्योंकि CNS के परिवेश में कुछ ऐसे अणु होते हैं जो तंत्रिकाओं की मरम्मत के सक्रिय विरोधी होते हैं।
शोधकर्ताओं ने उन सटीक आण्विक स्थितियों की पहचान करना आरंभ किया जो जीवित शरीर में एक्ज़ॉन को पुनर्जनन के लिए प्रेरित करती हैं। उन्होंने उन कारकों की भी खोज की जो CNS के एक्ज़ॉन को दोबारा उगने से रोकते हैं। 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध में, इनमें से पहली बाधा की पहचान हुई: मायलिन शीथ (आवरण), जो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की तंत्रिकाओं पर लिपटा होता है, द्वारा उत्पन्न शक्तिशाली, पुनर्जनन-अवरोधी प्रोटीन। अवरोधी प्रोटीन हटाने पर एक्ज़ॉन काफी दृढ़ता से बढ़ने में समर्थ हो गए।
इस खोज ने एक ऐसे क्षेत्र में नई जान डाल दी जिसे आशाहीन मानकर ख़ारिज किया जा चुका था, और इससे रीढ़ की हड्डी की संपूर्ण जैविकी के क्षेत्र में अनुसंधान का एक नया दौर आरंभ हो गया।
तंत्रिका संरक्षण
1990 का दशक: वैज्ञानिकों ने जाना कि रीढ़ की हड्डी को पहुंचे आघात में क्षति का एक लंबा सिलसिला होता है।
इस सिलसिले की पहली कड़ी है वह आघात जो रीढ़ की हड्डी को चोटिल करता है, और उसके बाद क्षति वाले भाग में शोथ और रासायनिक अव्यवस्था से संबंधित कोशिका क्षति का सिलसिला शुरू हो जाता है। स्टेरॉयड वर्ग की एक दवा तीव्र SCI के लिए स्वीकृत की जा चुकी है; ऐसा 1990 में हुआ।
आज: अब चोट के बाद के आण्विक परिवेश की कहीं बेहतर समझ हासिल हो चुकी है, जिसमें ग्लिया, रक्तचाप, और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया की भूमिका के बारे में हुई नई खोजें शामिल हैं, और इस समझ के बूते रीढ़ की हड्डी के आघात के प्रभावी तीव्र उपचार का विकास करने का कार्य जारी है।
पशु अध्ययनों में तंत्रिका क्षति न्यूनतम करने एवं कार्यक्षमता का संरक्षण करने में प्रभावी सिद्ध होने वाली दवाओं, कूलिंग, या कोशिका चिकित्साओं के असंख्य क्लीनिकल परीक्षण चल रहे हैं।
एक्ज़ॉन की वृद्धि को बढ़ावा देना
1990 का दशक: वैज्ञानिकों ने तंत्रिका आघात का उपचार ऐसे पदार्थों से करना आरंभ किया जो या तो सीधे-सीधे एक्ज़ॉन की वृद्धि को बढ़ावा देते थे या वृद्धि को रोकने वाले अणुओं को अवरुद्ध करते थे। ये रणनीतियां अलग-अलग चोटिल तंत्रिका कोशिकाओं को पुनर्जीवित करने में सफल रहीं, और पशु मॉडलों में इनसे रीढ़ की हड्डी की कार्यक्षमता की आंशिक बहाली भी हो सकी।
आज: वैज्ञानिक CNS के परिवेश के संशोधन का कार्य जारी रखे हुए हैं ताकि इसे वृद्धिशील तंत्रिका कोशिकाओं के लिए अधिक अनुकूल बनाया जा सके। ऐसे कई आंतरिक अणुओं की पहचान हो चुकी है जो वृद्धि को या तो बढ़ावा देते हैं या उसका विरोध करते हैं, साथ ही वृद्धि को बढ़ावा देने वाले कई अणुओं की भी पहचान हो चुकी है और उनका परीक्षण जारी है।
अनुसंधान के एक नए उत्साहजनक क्षेत्र ने यह दर्शाया है कि क्षतिग्रस्त एक्ज़ॉन स्वयं चोट पर ज़ोरदार प्रतिक्रिया देने में असमर्थ होता है। शरीर के उन आनुवंशिक कोड, जो भ्रूण के विकास से संबंधित हैं, को समझकर वैज्ञानिक चोट पर शरीर की प्रतिक्रिया को दोबारा शुरू करने में सफल रहे हैं, और इससे एक्ज़ॉन में अभूतपूर्व वृद्धि की रचना करने में सफलता हासिल हुई है। बेशक यह एक महत्वपूर्ण विकास है, पर इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए अभी और अध्ययन आवश्यक है।
तंत्रिका कोशिकाओं की कार्यक्षमता की बहाली के लिए क्षतिग्रस्त एक्ज़ॉन को दोबारा उगाना ही पर्याप्त नहीं होता है। बढ़ते हुए एक्ज़ॉन को पोषण और सहारा देना होता है, और फिर उसे एक ऐसे लक्ष्य से जोड़ा जाना होता है जो उपयोगी कार्यक्षमता उत्पन्न करे, न कि दर्द या स्पास्टिसिटी (मांसपेशियों की कठोरता)।
क्षतिपूरक वृद्धि को बढ़ाना
1990 का दशक: वैज्ञानिकों का ध्यान इस ओर गया कि क्षतिग्रस्त एक्ज़ॉन की मरम्मत के लिए रचे गए उपचारों से आस-पास की स्वस्थ तंत्रिका कोशिकाओं को भी बढ़ने और स्वास्थ्य-लाभ कर रहीं कोशिकाओं को सहारा देने में मदद मिली थी।
आज: शोधकर्ता इस प्रक्रिया को अनुकूलित करने पर कार्य कर रहे हैं, ताकि क्षतिग्रस्त, पर अखंड तंत्रिका-कोशिकीय नेटवर्क बनाए जा सकें, विशेषकर ऐसे लोगों में जो रीढ़ की हड्डी की अपूर्ण चोटों से ग्रस्त हैं — यानि वे जिनमें अभी-भी ऐसी अक्षत तंत्रिकाएं मौजूद हैं जिन्हें क्षतिग्रस्त तंत्रिकाओं का कार्यभार संभालने के लिए संभवतः राजी किया जा सकता है।
सुघट्यता
1990 का दशक: 21वीं सदी के आरंभ तक, यह बुनियादी सिद्धांत अपनी जगह बना हुआ था कि तंत्रिका तंत्र, “तारों” यानि वायर्स का एक अकेला समूह है, जो विकास के दौरान बनता है और फिर आजीवन अपरिवर्तित रहता है।
आज: वैज्ञानिक अब यह जानते हैं कि मस्तिष्क अपरिवर्तनीय नहीं है; यह वास्तव में वयस्कावस्था में नई तंत्रिका कोशिकाएं बनाता है। साथ ही, तंत्रिकाओं की वृद्धि में फेर-बदल करने या उसे बढ़ावा देने के अब कई तरीके मौजूद हैं। चोट के कारण तंत्रिकाओं में ऐसे प्रमुख पथ-परिवर्तन होते हैं जिससे संकेतों के अवरोध को निष्प्रभावी किया जा सके। रीढ़ की हड्डी के परिपथ सुघट्य या प्लास्टिक होते हैं, इसका यह अर्थ है कि उन्हें क्षतिग्रस्त भागों में कार्यभार संभालने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है। कुछ साधारण सी चिकित्साओं, जैसे बीच-बीच में ऑक्सीजन की कमी या शारीरिक व्यायाम से गतिक कार्यक्षमता से जुड़ीं कुछ तंत्रिकाओं की उद्वृद्धि को बढ़ावा मिलता है।
वैज्ञानिक ऐसी विभिन्न दवा चिकित्साओं का अध्ययन कर रहे हैं जिनसे तंत्रिकाजनन एवं ढलनशीलता को बढ़ावा मिलने की संभावना है। इस बात के साक्ष्य मौजूद हैं कि सचेतना (माइन्डफ़ुलनेस) से स्मृति एवं संज्ञान से संबंधित ढलनशीलता को प्रभावित किया जा सकता है। ढलनशीलता बढ़ाकर गतिक कार्यक्षमता में वृद्धि करने के लिए मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी के वैद्युत उद्दीपन (इलेक्ट्रिकल स्टीमुलेशन) का उपयोग अत्यधिक उत्साह उत्पन्न कर रहा है।
रीढ़ की हड्डी के सूक्ष्म परिपथों को अभी पूरी तरह तो समझा नहीं जा सका है, पर इसके अध्ययन से ऐसी अधिक सटीक चिकित्साओं के विकास की आशा अवश्य बनी है जिन्हें लकवाग्रस्त व्यक्तियों की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप बनाकर मरम्मत और ढलनशीलता को बढ़ावा दिया जा सकेगा।
ग्लियल कोशिकाएं
1990 का दशक: वैज्ञानिकों ने यह समझना बस शुरू ही किया था कि एस्ट्रोसाइट और ओलिगोडेंड्रोसाइट नामक कोशिकाएं तंत्रिका तंत्र में अपरिवर्ती नहीं हैं या वे बस जगह भरने के लिए नहीं हैं।
आज: तंत्रिका तंत्र की इन सहायक कोशिकाओं की भूमिका लगातार खुलकर सामने आ रही है। अब हम जानते हैं कि एस्ट्रोसाइट कोशिकाएं तंत्रिका तंत्र की चोट पर प्रतिक्रिया में एक अत्यंत महत्वपूर्ण, किंतु दोधारी भूमिका निभाती हैं — एक ओर तो वे तंत्रिका कोशिकाओं को पोषण देती हैं, पर दूसरी ओर वे ऐसे क्षतचिह्न या क्षति-ऊतक बना देती हैं जो चोट वाले भागों को सीलबंद कर देते हैं।
ओलिगोडेंड्रोसाइट कोशिकाएं मायलिन की रचना की कुंजी हैं; मायलिन तंत्रिकाओं के एक्ज़ॉन पर चढ़ा वह इंसुलेशन होता है जो वैद्युत-रासायनिक संकेतों का तंत्रिकाओं में तेज़ी से आगे बढ़ना संभव बनाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि मायलिन की हानि (जो मल्टिपल स्क्लेरोसिस की एक निर्धारक विशेषता है) का उपचार कोशिका चिकित्साओं द्वारा किया जा सकता है।
क्षतचिह्न बनने से रोकना
1990 का दशक: रीढ़ की हड्डी की चोट/क्षति वाले स्थान पर क्षति-ऊतक मरम्मत की राह में एक शारीरिक व रासायनिक बाधा का कार्य करता है। 1990 के दशक में, शोधकर्ताओं ने क्षति-ऊतक से संबंधित कुछ ऐसे आण्विक संकेतों की पहचान की जो वृद्धि को अवरुद्ध करते थे, और फिर उन्होंने इन अवरोधी संदेशवाहकों को निष्प्रभावी करने के तरीके तलाशने शुरू किए।
आज: शोधकर्ता ऐसे एंज़ाइम परख रहे हैं जो मूल रूप से क्षतचिह्न को घोल देते हैं और तंत्रिकाओं को उसकी बाधा पार करने में समर्थ बनाते हैं। प्रयोगशाला अध्ययनों में, क्षतचिह्न नष्ट करने वाली दवाओं के उपयोग के बाद पशुओं ने अपनी कार्यक्षमता वापस पाई है। तकनीकी विवरण तैयार हो जाने पर मानव परीक्षण आरंभ करने की योजना है।
कृत्रिम पुल
1990 का दशक: एक्ज़ॉन को वृद्धि करने के लिए एक ठोस आधार चाहिए होता है। वे रीढ़ की हड्डी की क्षति वाले स्थान पर मौजूद भौतिक रिक्त स्थान को स्वयं पार करने में समर्थ नहीं होते हैं। 1990 के दशक में, शोधकर्ताओं ने ऐसे संश्लेषित पदार्थों को परखना शुरू किया जिनसे तंत्रिका कोशिकाओं को ये रिक्त स्थान पार करने में मदद मिलने की संभावना थी। उन्होंने यह भी पाया कि कुछ प्रकार की प्रत्यारोपित कोशिकाएं इस रिक्त स्थान को भरने वाले पुल का काम कर सकती थीं। एक परीक्षण पशु के शरीर से ली गईं प्रत्यारोपित सहायक कोशिकाओं, जैसे श्वान (Schwann) कोशिकाओं और ओल्फ़ैक्टरी एनशीथिंग ग्लिया (OEG) ने काफी संभावना दिखाई।
आज: अन्वेषकों ने रिक्त स्थान को भरने के लिए जीवित कोशिकाओं के विकल्प के रूप में संश्लेषित बहुलकों के ढांचे और जैविक पदार्थ (जैसे मछलियों से प्राप्त फ़ाइब्रिन नामक प्रोटीन) विकसित कर लिए हैं।
ये ढांचे बढ़ती हुई कोशिकाओं को भौतिक आधार प्रदान करते हैं, पर कार्यक्षमता की बहाली को बढ़ावा देने के लिए इन्हें वृद्धि-संवर्धक अणुओं के साथ, या यहां तक कि स्टेम कोशिकाओं के साथ भी, प्रयोग किया जा सकता है।
शोधकर्ता विशेषीकृत कोशिकाओं के प्रत्यारोपण की सफलता में सुधार करने की दिशा में कार्य कर रहे हैं। पशु प्रयोगों से क्लीनिकल परीक्षणों को बढ़ावा मिला है। श्वान (Schwann) कोशिकाएं और OEG प्रत्यारोप पहले ही मानव परीक्षणों में प्रवेश कर चुके हैं, और साथ ही कई प्रकार की स्टेम कोशिकाएं भी। कुछ परीक्षणों में दीर्घकालिक चोटों/क्षतियों से ग्रस्त लोगों को शामिल किया जा रहा है जो विशेष रूप से उत्साहजनक बात है।
स्टेम कोशिकाएं
1990 का दशक: वैज्ञानिकों ने मानव स्टेम कोशिकाओं को अलग करना सीखा और क्षतिग्रस्त तंत्रिका परिपथों के पुनर्निर्माण की कोशिश में इन कोशिकाओं का प्रत्यारोपण आरंभ कर दिया। वे आशा कर रहे थे कि अविभेदित कोशिकाएं वहां पहुंच सकेंगी जहां उनकी आवश्यकता है और स्वयं को अनुपस्थित प्रकार की कोशिकाओं में बदल सकेंगी। स्टेम कोशिकाओं को लेकर जबर्दस्त प्रचार हुआ, जिसमें जनता ने स्टेम कोशिकाओं की एक ऐसे “प्रकृति के टूलबॉक्स” के रूप में प्रशंसा की जो शरीर की किसी भी समस्या को ठीक कर सकता है।
दुर्भाग्य से, कई लोग दावों के समर्थन में पर्याप्त वैज्ञानिक एवं क्लीनिकल साक्ष्य के बिना ही स्टेम कोशिकाओं के जादू का प्रचार-प्रसार करने वाले विदेशी क्लीनिकों के झांसे में आ गए।
आज: स्टेम कोशिकाओं की मदद से क्या-कुछ संभव है यह धीरे-धीरे पता चल रहा है। ऐसे कई क्लीनिकल परीक्षण चल रहे हैं जो इन कोशिकाओं को विभिन्न प्रकार की स्थितियों में परख रहे हैं, जिनमें तीव्र और दीर्घस्थायी, दोनों प्रकार की रीढ़ की हड्डी की चोट/क्षति शामिल है।
स्टेम कोशिका वैज्ञानिकों ने कोशिकाओं के नए रूप खोजे हैं, जैसे इन्ड्यूस्ड प्लूरीपोटेंट सेल (iPSC), जो शरीर से प्राप्त एक कोशिका होती है, उदाहरण के तौर पर त्वचा की कोशिका, जिसे एक अधिक आदिम अवस्था में जाने के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है। ये iPSC काफी हद तक अविभेदित स्टेम कोशिकाओं की तरह व्यवहार करती हैं और इनके साथ वे नैतिक मुद्दे नहीं जुड़े हैं जो भ्रूण कोशिकाओं के साथ जुड़े होते हैं।
पुनर्सुधार की पुनर्रचना करना
1990 का दशक: SCI के क्षेत्र में यह समझने की अभी बस शुरुआत ही हुई थी कि पुनर्सुधार का अर्थ क्षतिपूरक यंत्र एवं साधन प्रदान करने से कहीं अधिक है। रीढ़ की हड्डी की चोट/क्षति के पुनर्सुधार में शारीरिक चिकित्सा की महत्ता सिद्ध हो चुकी थी, जिसे उन पशु एवं मानव अध्ययनों ने रेखांकित किया था जिसमें यह देखने को मिला कि कदम बढ़ाने की बारंबारी और संरचित दिनचर्याओं से निचली (चोट के स्तर से नीचे की) रीढ़ की हड्डी को वास्तव में यह “सीखने” के लिए प्रेरित किया जा सकता था कि मस्तिष्क से आने वाले संकेतों के बिना गतिशीलता का नियंत्रण कैसे किया जाए।
वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि गतिविधि-आधारित चिकित्साओं से शरीर में ऐसे आण्विक संकेतों का उत्पादन बढ़ गया जो एक्ज़ॉन की वृद्धि और तंत्रिका कोशिकाओं की उत्तरजीविता को सहारा देते हैं।
आज: श्रमपूर्ण व्यायाम पुनर्सुधार का एक मानक भाग बन चुका है। वैज्ञानिक यह समझ चुके हैं कि पैटर्न-युक्त गतिविधियों के कुछ रूप रीढ़ की हड्डी में सोए पड़े तंत्रिका परिपथों को जागृत करते हैं और कुछ हद तक कार्यक्षमता सक्रिय कर सकते हैं।
यह तथ्य गतिक प्रशिक्षण — किसी सचल ट्रेडमिल पर सहायता के साथ कदम बढ़ाना — से संबंधित तंत्रिका-स्वास्थ्य-लाभ का आधार है। इसे एक कदम और आगे ले जाते हुए, शोधकर्ताओं ने गतिविधि में रीढ़ की हड्डी का स्टीमुलेशन (उद्दीपन) जोड़ दिया है। थोड़े से रोगियों में, रीढ़ की हड्डी के स्टीमुलेशन (उद्दीपन) से कार्यक्षमता की अभूतपूर्व बहाली हासिल हुई है; साथ ही, स्टीमुलेशन से हृदयवाहिकीय, मूत्राशय, एवं यौन कार्यक्षमता के लिए अवशेषी लाभ भी उत्पन्न हुए हैं। कई और मानव परीक्षण जारी हैं।
आनुवंशिक सीमाओं की छानबीन
1990 का दशक: वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी की रचना के आनुवंशिक आधार का अध्ययन करना आरंभ किया।
आज: शोधकर्ताओं के पास विकासात्मक जीवविज्ञान की एवं उन विशिष्ट जीनों की अब एक बेहतर समझ है जो हमारे जन्म से पहले हमारे तंत्रिका तंत्रों की रचना के खाके तैयार करती हैं।
अब वैज्ञानिक मानते हैं कि वयस्क पशु में तंत्रिका वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए लक्षित जीनों को चालू करना संभव है। परिष्कृत माइक्रो-अरे स्क्रीनिंग तकनीकों, और चूहे व मानव के जीनोम विश्लेषण से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग करके अब हमारे पास शरीर के उन आनुवंशिक कोडों की बेहतर समझ आ गई है जो एक्ज़ॉन के पुनर्जनन से संबंधित कोशिका गतिविधि एवं व्यवहार तय करते हैं।
अन्य आधुनिक अनुसंधान विचार जो 25 वर्ष पहले प्रभावी नहीं थे
संयोजन चिकित्साएं: इस बात की संभावना है कि कोई एक चिकित्सा, रीढ़ की हड्डी की चोट/क्षति को ठीक नहीं कर सकेगी। बल्कि, समय के साथ, कई चिकित्साओं के संयोजन की आवश्यकता हो सकती है।
मस्तिष्क-मशीन इंटरफ़ेस: पिछले लगभग दस वर्षों की अवधि में बायोइंजीनियर मानव समेत कई पशुओं की मस्तिष्क की तरंगों से कंप्यूटर यंत्रों का नियंत्रण करने में सफल रहे हैं।
उदाहरण के लिए, एक रेसस बंदर सिर्फ़ अपने मस्तिष्क का उपयोग करके एक साथी बंदर के लकवाग्रस्त हाथ को सटीक ढंग से सक्रिय करने में सफल रहा। एक क्वाड्रीप्लेजिया (दोनों हाथों, दोनों पैरों और धड़ के लकवे) से ग्रस्त महिला सिर्फ़ अपने विचारों का उपयोग करके एक फ़ाइटर जेट सिमुलेटर चला सकी। क्वाड्रीप्लेजिया से ग्रस्त एक आदमी, अपने विचारों को एक कृत्रिम बांह की ओर भेजकर, बीयर का गिलास पकड़ने और बीयर पी सकने में सफल रहा। अनगिनत प्रयोगशालाओं में इस क्षेत्र में तेज़ी से प्रगति हो रही है।
नए साधन: वैज्ञानिकों के पास जीवित पशुओं में तंत्रिकाओं के कार्य देखने के लिए अब नए साधन मौजूद हैं। नए साधन, जिनमें ऑप्टोजेनेटिक्स शामिल है, प्रकाश के स्रोत का उपयोग करके अलग-अलग कोशिकाओं को ऑन व ऑफ़ कर सकते हैं। आनुवंशिक कोडों में फेर-बदल व संपादन करने की नई विधियां अब उपलब्ध हैं।
बिग डेटा: SCI का क्षेत्र अब बायोइन्फ़ॉर्मेटिक्स में पूरी तरह संलग्न है। तथाकथित बिग डेटा के विश्लेषण से शोधकर्ताओं को ऐसे स्तर पर पैटर्न और विवरण के डेटा की विशाल मात्राएं खोज निकालने की सुविधा मिली है जिस स्तर पर पहले यह करना संभव नहीं था। साथ ही, इस क्षेत्र में खोज किए जाने की गति बढ़ाने और दोहराव घटाने के लिए प्रयोगों को करने के तरीके का मानकीकरण करने की दिशा में काफी प्रगति हुई है।
माप: चिकित्सा का प्रभाव परखने के लिए शोधकर्ताओं ने कार्यक्षमता में होने वाले किन्हीं भी बदलावों को एकरूप एवं शुद्ध ढंग से मापने के बेहद सटीक तरीके विकसित कर लिए हैं। इनमें, गर्दन वाले भाग की चोट पर लक्षित किसी भी चिकित्सा के लिए हथेलियों व अंगुलियों की कार्यक्षमता के परीक्षणों की शृंखला शामिल है। क्लीनिकल परीक्षणों की योजना बनाने, उन्हें अमल में लाने, और अंततः उन्हें सफल बनाने के लिए परिणामों का उपयुक्त और संवेदनशील मापन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।